बहू की विदा

लेखक परिचय – 

श्री विनोद रस्तोगी का जन्म शम्साबाद, जिला फर्रुखाबाद में सन् 1923 में हुआ था उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा शम्साबाद में पायी । इन्होंने फर्रुखाबाद से हाईस्कूल किया और इण्टर तथा बी.ए.कानपुर से किया। इन्होंने अपना लेखन कार्य कविताओं और कहानियों से शुरू किया। फिर सन् 1950 से इन्हांने नाटक लेखन के क्षेत्र में प्रवेश किया और एक सफल नाटककार के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ दी। विनोद जी ने सामाजिक समस्याओं को आधार बनाकर अनेक नाटक लिखे। ‘नये हाथ’, “आज़ादी के बाद’, ‘तूफ़ान और तिनका’, ‘ठण्डी आग’, ‘दरारें’, ‘रुपया’, ‘रूप और रोटी’ इनके सफल नाटक रहे। इसके अतिरिक्त इन्होंने ‘जिन्दगी के गीत’, ‘पुष्प का पाप’ आदि रचनाओं के द्वारा सामाजिक कुरीतियों पर भी टीका टिप्पणी करने में चूक नहीं की। बहू की विदा’ नाटक में ऐसी ही एक सामाजिक समस्या, तनाव और संघर्ष को इन्होंने दर्शाया है। ‘निर्माण देवता’, ‘काले कौवे, गोरे हंस’, ‘गोवा का दान’, ‘भगीरथ के बेटे’, ‘रोटीवाली गली’ भी इनके उत्कृष्ट नाटक रहे हैं।

कथानक –

जीवनलाल एक धनी व्यापारी थे; पर वे जितने धनी थे, उससे अधिक लोभी थे। उनके बेटे रमेश का विवाह प्रमोद की बहन कमला से हुआ था। विवाह में पूरा दहेज न मिलने के कारण वे लड़की वालों से नाराज़ थे। जब प्रमोद अपनी बहन को विदा कराने आया तो उन्होंने उससे साफ़-साफ़ कह दिया कि पूरा दहेज दिए बिना विदा नहीं होगी। इस पर प्रमोद ने उनसे गिड़गिड़ा कर कहा कि शादी के बाद हर लड़की पहला सावन अपने मैके में अपनी सहेलियों के साथ हँस-खेलकर विताना चाहती है। यदि उन्होंने कमला को विदा नहीं किया तो उस पर क्या गुज़रेगी। इतना ही नहीं, जब उसकी माँ उसे अकेला देखेंगी तो उनका दिल टूट जाएगा।

जीवनलाल प्रमोद से बोले कि यदि यह बात थी तो उन्होंने पूरा दहेज क्यों नहीं दिया। दहेज तो दूर, उन्होंने बारातियों की खातिर तक भी ठीक ढंग से नहीं की। यदि उनमें दहेज देने की क्षमता कम थी तो वे अपनी बराबरी का ही घर देखते। झोंपड़ी में रहने वालों ने महलों से नाता क्यों जोड़ा ! उन्होंने प्रमोद से कहा कि इस सम्बन्ध से उनकी प्रतिष्ठा को जो धक्का लगा है, उनके बंधु-बान्धवों में उनकी जो हँसी हुई है, उससे उनके मन में गहरा घाव हो गया है। यदि वह अपनी बहन को विदा कराना चाहता है तो वह अपनी माँ से जाकर कहे कि वे पहले उनके घाव के लिए मरहम भेजें।

जीवनलाल के कटु वचनों को सुनकर प्रमोद के मन को गहरी ठेस लगी। उसने बहुत अनुनय-विनय की पर उन्होंने उसकी एक न सुनी। अंत में निराश होकर उसने कहा कि इस बार तो वे उसकी बहन को विदा कर दें, वे भविष्य में उनकी माँग पूरी करने की भरसक चेष्टा करेंगे। इस पर जीवनलाल बोले कि वह उन्हें बेवकूफ़ बनाने का प्रयत्न न करे। जब तक उन्हें पाँच हज़ार रुपए नकद नहीं मिल जाएँगे, कमला विदा नहीं होगी। इस बात पर प्रमोद को क्रोध आ गया। वह आवेश में आकर बोला कि उस भोली-भाली लड़की ने उनका क्या बिगाड़ा है, जिसे न भेजकर वे उससे बदला ले रहे हैं। यदि आज वहाँ रमेश बाबू होते, तो क्या फिर भी वे वैसा ही व्यवहार करते।

रमेश के बारे में कही हुई बात को सुनकर जीवनलाल को और भी क्रोध आ गया। वे प्रमोद से बोले कि रमेश उनका बेटा है ; वह उनके सामने मुँह खोलने की हिम्मत नहीं कर सकता। वह उसकी तरह अपने से बड़ों के साथ बदतमीज़ी से बात करने वाला आवारा छोकरा नहीं। यह सुनकर प्रमोद बोला कि वे उसे लड़की वाला समझकर ही उसका अपमान कर रहे हैं। उन्हें यह कदापि न भूलना चाहिए कि वे भी बेटी वाले हैं। इस पर जीवनलाल बोले कि पिछले महीने उन्होंने भी अपनी बेटी गौरी की शादी की है। उन्होंने बारात की जो ख़ातिर की, उसे देखकर लड़के वाले दंग रह गए । शादी में दिए गए दहेज को देखकर मोहल्ले वालों ने दाँतों तले उँगली दबा ली। वे बेटी वाले हैं, पर बेटी वाले होने पर भी उनका मस्तक गर्व से तना हुआ है। फिर उन्होंने कहा कि रमेश गौरी को लेने गया है। घंटे भर में वह उसे लेकर आ जाएगा। गौरी पहला सावन अपने मैके में बिताएगी पर उसकी बहन के सपने कभी पूरे न होंगे और उसके सपनों के खून के दाग उसके हाथों और उसकी माँ के आँचल पर होंगे।

प्रमोद द्वारा यह कहे जाने पर कि उसकी बहन उनकी भी तो कुछ लगती है; जीवनलाल बोले कि बहू और बेटी को कभी एक तराजू में नहीं तोला जा सकता; बहू बहू है, और बेटी बेटी। यह सुनकर प्रमोद ने उनसे कहा कि यदि वे अपनी ज़िद पर अड़े हुए हैं तो फिर उनसे और अधिक अनुनय-विनय करना व्यर्थ है। फिर वह उनसे बोला कि जाने से पहले वह एक बार अपनी बहन से मिलने की अनुमति चाहता है। इस पर जीवनलाल ने अपनी पत्नी राजेश्वरी को पुकार कर कहा कि वे कमला से कहे कि वह अपने भाई से मिल ले। कुछ ही क्षणों में अपना सिर नीचा किए हुए कमला प्रमोद के पास आकर खड़ी हो गई। प्रमोद ने उससे राजी-खुशी पूछी तो वह फूट-फूटकर रोने लगी। उसे रोती-सिसकती देखकर प्रमोद ने उससे कहा कि वह बेकार में आँसू न बहाए। उसके आँसू रूपी मोतियों का मूल्य समझने वाला वहाँ कोई नहीं है। उसे याद रखना चाहिए कि उसके आँसुओं के पानी से उसके ससुर का पत्थर के समान निर्मम हृदय कभी नहीं पिघल सकता।

कमला को सान्त्वना देने के बाद प्रमोद ने उससे कहा कि वह किसी बात की चिन्ता न करे।वह अपने घर जाकर जीवनलाल के घाव का मरहम लेकर लौटेगा। यह सुनकर उसने प्रमोद से पूछा वह मरहम का अर्थ नहीं समझ सकी। इस पर प्रमोद ने उसे बताया कि जीवनलाल कह रहे हैं कि पाँच हज़ार रुपए दिए बिना उनकी चोट का इलाज नहीं होगा। वे रुपए ही उनके हृदय के घाव के लिए मरहम का कार्य करेंगे। फिर वह बोला कि सात-आठ हज़ार रुपए में तो उनका मकान भी बिक जाएगा। मकान बेचने की बात से कमला तड़प उठी। वह ऑँखों में ऑसू भरकर बोली कि वे उसकी विदा के लिए अपना मकान न बेचें। उसने प्रमोद को ऐसा न करने के लिए अपने सुहाग की कसम भी खिलाई। यह सुनकर प्रमोद ने उससे पूछा कि क्या वह पहला सावन अपनी सखी-सहेलियों के साथ हँस-खेलकर नहीं बिताना चाहती ? इस पर कमला बोली कि किस लड़की के मन में अपने मैके में जाकर सावन बिताने की कामना नहीं होती, पर वह अपनी कामना के लिए उन्हें इतना बड़ा बलिदान नहीं करने देगी। उन्हें याद रखना चाहिए कि साल-दो-साल में उन्हें विमला का विवाह भी करना है। फिर उसने प्रमोद को बताया कि वे उसकी चिन्ता न करें। विदा न होने से उसे तनिक भी दु:ख नहीं होगा। गौरी आ रही है। उसका स्वभाव बहुत अच्छा है, वह हमेशा हँसती-हँसाती रहती है। उसके साथ रहकर उसे सखी-सहेलियों की कमी नहीं अखरेगी।

कमला की बात सुनकर प्रमोद ने उससे कहा कि उन्हें एक-न-एक दिन तो रुपया देना ही पड़ेगा। कागज़ टुकड़ों पर अपना स्नेह, ममता और प्यार बेचने वालों के बीच वह कितने दिन रह सकेगी !यह सुनकर कमला बोली कि उसकी सास ममता की साकार मूर्ति हैं। धीरे-धीरे उसके ससुर का क्रोध भी कम हो जाएगा। इसी समय वहाँ राजेश्वरी आ पहुँचीं। उन्होंने प्रमोद और कमला से पूछा कि भाई-बहन क्या बातें कर रहे हैं। प्रमोद द्वारा चुप रहने पर वे बोलीं कि जब से कमला की विदा के बारे में उसकी चिट्ठी आई है, वे तभी से अपने पति को समझाने की चेष्टा कर रही हैं, पर वे अपने आगे किसी की नहीं सुनते। फिर उन्होंने प्रमोद से पूछा कि वे उससे कितने रुपए माँग रहे हैं। इस बात का उत्तर प्रमोद क्या देता ! वह उनसे रुपए लेने में संकोच का अनुभव कर रहा था राजेश्वरी के बार-बार आग्रह करने पर उसने बताया कि वे कह रहे हैं कि पाँच हज़ार रुपए के बिना विदा नहीं होगी। राजेश्वरी ने प्रमोद की बात सुनकर उससे कहा कि वे पाँच हज़ार रुपए उसे अभी दे रही हैं।फिर वे बोलीं कि वह उन रुपयों को उनके पति के मुँह पर मार कर उनसे यह कहना न भूले कि वे उन कागज़ों के टुकड़ों से प्यार करते हैं, पर इन्सानों से नहीं। यह सुनकर प्रमोद बोला कि वह उनसे रुपए नहीं ले सकता। वह अपने घर जाकर रुपयों का प्रबन्ध करके ही अपनी बहन को विदा कराने आएगा। इस पर राजेश्वरी बोलीं कि वे माँ हैं, इसलिए वे माँ के हृदय को खूब समझती हैं । जिस प्रकार वे गौरी की प्रतीक्षा कर रही हैं, उसी प्रकार कमला की माँ भी कमला की प्रतीक्षा कर रही होगी। यदि वह अकेला लौटा तो उसकी माँ पर क्या गुजरेगी। फिर उन्होंने तिजोरी की चाबी देकर कमला से कहा कि वह पाँच हज़ार रुपए निकालकर ले आए। अपनी सास के ममत्वपूर्ण व्यवहार को देखकर कमला सिसक उठी। इस पर राजेश्वरी ने उसे बेटी कहकर अपने हृदय से लगा लिया। गौरी के आने का समय हो रहा था । जीवनलाल चाहते थे कि गौरी के आने पर उसका भव्य स्वागत हो। ऐसा करके वे प्रमोद को नीचा दिखाना चाहते थे। उन्होंने राजेश्वरी को पुकारा और बोले कि गौरी के आने का समय हो गया, पर उन्होंने उसके स्वागत की कुछ भी तैयारी नहीं की। वह गौरी का ऐसा स्वागत करना चाहते हैं कि जिससे प्रमोद को भी पता चल जाए कि नाक वाले अपनी बेटी का कैसा स्वागत करते हैं। यह बात राजेश्वरी को अच्छी नहीं लगी । वह अपने पति से बोली कि वे हमेशा ही बेढंगी बातें करते हैं। उन्हें गाली देने के अलावा कुछ नहीं आता। वे समझते हैं कि सारे संसार में बस एक वे ही नाक वाले हैं। ऐसी बातें उ्हें शोभा नहीं देती । जीवनलाल द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने उससे कोई गलत बात कही है, प्रमोद बोला कि उनकी बात बिलकुल सही है, क्योंकि आज के युग में जिसके पास पैसा नहीं है वह नक्कटा तथा मुँह दिखने लायक नहीं है है  इसी समय कार रुकने की आवाज़ आई। जीवनलाल को लगा जैसे रमेश गौरी को लेकर आ गया है। उन्होंने राजेश्वरी से कहा कि वे जल्दी से मिठाई का थाल लेकर आएँ। परन्तु रमेश अकेला था। उसे देखकर जीवनलाल ने उससे पूछा, क्या गौरी नहीं आई ? रमेश ने उत्तर दिया कि दहेज पूरा न मिलने के कारण उसके ससुराल वालों ने उसे विदा नहीं किया। इस बात को सुनकर जीवनलाल क्रोधित हो उठे| वे बिगड़कर बोले कि उन्होंने गौरो की शादी में अपने जीवन-मर की कमाई लगा दो, पर लड़के वालों की दृष्टि में फिर भी कमी रह गई। वे कितने लोभी हैं। यह सुनकर राजेश्वरी बोलीं कि उन्हें लड़के वालों को बुरा-भला नहीं कहना चाहिए।

यदि लड़की वाला अपना घर-द्वार बेचकर भी शादी में लगा दे, तो भी लड़के वालों की नज़र में कुछ न कुछ कमी रह ही जाती है। फिर वह बोली कि वे अपनी ओर क्यों नहीं देखते। रमेश की शादी में लड़कीवालों ने क्या नहीं दिया, पर उनकी नाक- भौं हमेशा सिकुड़ी ही रही। राजेश्वरी की बात सुनकर जीवनलाल का क्रोध और भी बढ़ गया। उन्होंने राजेश्वरी से कहा कि वे चुप रहें। फिर वे बोले कि लड़के वालों ने उनकी बेटी विदा न करके उनका अपमान किया है। इस पर राजेश्वरी ने कहा कि दूसरे की बेटी को विदा न करके क्या वे किसी का अपमान नहीं कर रहे ? जो व्यवहार वे दूसरों से अपनी बेटी के प्रति चाहते हैं, वैसा ही व्यवहार उन्हें दूसरों की बेटी के प्रति करना चाहिए। जब तक वे बेटी और बहू के प्रति समान व्यवहार नहीं करेंगे ; उन्हें न सुख मिलेगा, न शान्ति। इन बातों को सुनकर जीवनलाल की उद्विग्नता और भी बढ़ गई। वे इधर-उधर टहलने लगे। फिर कुछ सोचकर वे बोले कि बेटी और बहू, बहू और बेटी की उलझन उनकी समझ में नहीं आती। इस पर राजेश्वरी ने उन्हें बताया कि यदि हर बेटे वाला यह याद रखे कि वह भी बेटी वाला है तो यह उलझन अपने आप ही समाप्त हो जाए। इन शब्दों को सुनकर उनकी आँखें खुल गईं। उन्होंने राजेश्वरी से कहा कि वे ठीक ही कहती हैं। प्रमोद ने जीवनलाल से अपने घर जाने की अनुमति माँगी और कहा कि वह शीघ्र ही वहाँ से वापिस लौटेगा। वे विश्वास रखें कि इस बार वह उनकी चोट का मरहम लाना नहीं भूलेगा। इन शब्दों को सुनकर जीवनलाल ने प्रमोद से कहा कि वह उन्हें और लज्जित करने की चेष्टा न करे।उनकी चोट का इलाज गौरी की ससुराल वालों ने दूसरी चोट से कर दिया है। इन शब्दों को सुनकर प्रमोद आश्चर्यचकित हो उठा। जीवनलाल ने उससे आगे कहा कि कभी-कभी चोट भी मरहम का काम कर जाती है और उनके साथ ऐसा ही हुआ फिर वे राजेश्वरी से बोले कि वे बहू की विदा करने का प्रबन्ध क्यों नहीं करतीं। इन शब्दों को सुनकर राजेश्वरी पुलकित हो उठीं | उनकी आँखों में खुशी के आँसू छलक उठे। रमेश और प्रमोद भी मुस्कराकर एक दूसरे की ओर देखने लगे।

बहू की विदा एकांकी का संदेश –
बहू ही विदा एकांकी दहेज़ प्रथा की बुराईयों को दर्शाती एकांकी है ।इस एकांकी के माध्यम से लेखक ने दहेज़ प्रथा का विरोध किया है। एकांकी में प्रमुख कथा बहू की विदाई है ,जिसमे ससुर जीवनलाल अपनी बहु की विदाई के लिए पाँच हज़ार की माँग करते हैं ,जिसे बहु के भाई प्रमोद द्वारा नहीं दे पाने के कारण वह विदा करने के इनकार कर देते हैं ।अंत में स्वयं उनकी बेटी जब दहेज़ के कारण ही विदा करने से इनकार कर दी जाती है तो जीवनलाल आखें खुल जाती हैं। वह कहते हैं चाहे जीवन भर की कमाई दे दो ,पर लड़की वालों की माँग पूरी नहीं होती है ।अतः उनका ह्रदय परिवर्तन हो जाता है। लेखक ने दहेज़ प्रथा को समाज के लिए अभिशाप माना है । लेखक का यह भी मानना है कि बहु और बेटी को समान मानना चाहिए,तभी पारिवारिक गृहस्थी शांतिपूर्ण व सुखदायी होगी। अतः एकांकीकार विनोद रस्तोगी अपनी एकांकी बहू की विदाई के माध्यम से दहेज़ प्रथा की समस्या के प्रति पाठकों को जागरूक किया है। बहू की विदा’ विनोद रस्तोगी द्वारा लिखा गया एक प्रभावी एवं महत्त्वपूर्ण एकांकी है। विनोद रस्तोगी ने अपनी सुन्दर शैली में समाज की एक अति गम्भीर समस्या को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है। समाज को चलाने वाला मध्यमवर्गीय वर्ग आज बहुत-सी समस्याओं में स्वयं को उलझा हुआ पाता है। ‘बहू की विदा’ दहेज प्रथा को लेकर लिखा गया ऐसा ही एक एकांकी है। सदियों से पीड़ित और प्रताड़ित स्त्री की दशा अब भी शोचनीय बनी हुई है। दहेज रूपी दानव आज भी असंख्य ललनाओं को अपना ग्रास बना रहा है। ‘बहू की विदा’ एकांकी ऐसे ही एक सत्य को उभारने का एक सफल प्रयास है जो बदलते हुए मूल्यों के साथ स्त्री की बदली हुई मानसिकता को भी दर्शाता है। प्रमोद अपनी बहन कमला को विवाह के बाद पहले सावन पर षर ले जाने के लिए आया है परन्तु उसके ससुर जीवनलाल जी उसे भेजने को तैयार नहीं हैं क्योंकि वह पर्याप्त दहेज नहीं लाई है। जीवनलाल जी और दहेज की माँग का संकेत देते हैं। प्रमोद की स्थिति करुणाजनक और दयनीय है। एकांकी के संवाद बिल्कुल सटीक और सारगर्भित हैं जो वरपक्ष के प्रभुत्व को दिखाते हैं। परिस्थितियों किस प्रकार बदलती हैं यह तब पता चलता है जब जीवनलाल की अपनी पुत्री गौरी को भी उसकी ससुराल से विदा नहीं किया जाता क्योंकि उनके अनुसार वह भी पर्याप्त दहेज नहीं लाई थी। एकांकीकार की भाषा सरल, सहज व बोधगम्य है और पात्रों के परस्पर संवाद नाटक की कड़ी को परस्पर जोड़ते चलते हैं।वर्तमान संदर्भ में यह एकांकी समय की माँग को लेकर लिखा गया एक अनूठा प्रयास है। कमला को सांस का अपनी बहू के प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार सास के प्रति जनसाधारण की धारणा को बदल देता है। प्रत्येक पात्र अपनी अभिव्यक्ति को प्रभावी बनाता है। सास में माँ का हृदय भी है । सास के बहू के प्रति व्यवहार से यह स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है।

उद्देश्य – 

‘बहू की विदा’ एकांकी का उद्देश्य समाज में प्रचलित दहेज प्रथा के अभिशाप पर तीखा (करारा) प्रहार करना है जिससे सबसे अधिक प्रभावित वर्तमान मध्यवर्गीय परिवार है। बेटी के जन्म के साथ ही माता-पिता उसके सुखी भविष्य के लिए धन एकत्रित करना प्रारम्भ कर देते हैं क्योंकि वे अपनी पुत्री को किसी भी प्रकार दुःखी नहीं देखना चाहते। जहाँ माता-पिता दहेज नहीं जुटा पाते वहाँ बेटियाँ प्रताड़ित की जाती हैं और यातनाएँ सहती हैं। एकांकी उन लोगों पर कटाक्ष है जो पराई बेटी पर दहेज न लाने पर अत्याचार करते हैं परन्तु जब उनकी बेटी विवाहोपरान्त दूसरे घर (ससुराल) जाती है तो यही लोग अपेक्षा करते हैं कि उनकी बेटी से दहेज की माँग न की जाय। यदि बेटे और बेटी वाले दोनों ही पक्ष एक दूसरे की पीड़ा को समझें तो समाज से इस कलंक को सदा के लिए मुक्त किया जा सकता है।

शीर्षक की सार्थकता – 

बहू की विदा’ शीर्षक सटीक और सार्थक है क्योंकि यह एक ऐसी सामाजिक कुरीति को दर्शाता है जिसे समय रहते दूर नहीं किया गया तो उसका दूरगामी दुष्प्रभाव हमारे समाज की खोखला बना देगा और विवाह जैसा पवित्र संस्कार मात्र औपचारिक बनकर रह जायेगा और अपनी पवित्रता खो देगा। बहू को विदा नहीं किया गया क्योंकि वह पूरा दहेज नहीं लाई थी। उससे अब पाँच हज़ार रुपयों की माँग की जा रही है। लड़की का भाई उसे विदा कराने आया है पर दहेज की माँग के आगे वह असहाय व निराश है। दूसरी ओर जब स्वयं जीवनलाल की बेटी को दहेज पूरा न लाने के कारण विदा नहीं किया जाता तो उनकी आँखें खुलती हैं और वह बहू को विदा कर देते हैं।

चरित्र-चित्रण –

जीवनलाल – 
बहू की विदा’ एकांकी में जीवनलाल का चरित्र विशेष महत्व रखता है। दहेज जैसी सामाजिक परम्परा के निर्वाह के लिए वह अपने पुत्र रमेश की पत्नी को पहले सावन पर मायके नहीं भेजना चाहता क्योंकि वह पूरा दहेज नहीं लाई है, वह अपनी समृद्धि ओर सामर्थ्य के आगे उसके भाई को नीचा दिखाता है। वह प्रमोद के प्रति कटु शब्दों का प्रयोग करता है, जिसे प्रमोद चुपचाप सहन करता है क्योंकि वह लड़की का भाई है जिसे वरपक्ष के सामने सदा झुकना है। अपनी झूठी शान रखने के लिए जीवनलाल अपनी बेटी के विवाह में सामर्थ्य से अधिक धन खर्च करता है। वह स्वयं को नाकवाला अर्थात् सम्मानवाला कहता है और बड़ी अधीरता से अपनी बेटी की प्रतीक्षा करता है और उसके स्वागत की विशेष तैयारी करता है।उसकी नाक भी कटती है और मूँछ भी नीची होती है जब उसकी अपनी बेटी की विदाई नहीं होती क्योंकि उसके ससुरालवाले भी उससे बाकी का दहेज माँग रहे हैं। वह क्रोधित होकर शराफ़त और इंसानियत की बात करता है जिसकी उसमें स्वयं कमी थी। पत्नी द्वारा फटकारे जाने पर वह बेटी और बहू के सम्बन्ध को लेकर उलझन में पड़ जाता है। क्योंकि जिस बहू की वह दहेज के कारण विदाई नहीं करना चाहता वह भी किसी की बेटी है। वह अपने किये पर लज्जित होता है और पत्नी से कहता है कि बहू की विदाई की तैयारी करो।

राजेश्वरी – 
जीवनलाल की पत्नी है। उसका स्वभाव भिन्न है । जहाँ जीवनलाल ज़िद्दी स्वभाव के अभिमानी और कठोर प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं वहीं उनकी पत्नी राजेश्वरी धैर्यवान और ममता की मूर्ति है। वह बहू की विदाई के दिन अपने पति को बार-बार समझा रही थी परन्तु पति की ज़िद के आगे उसकी एक न चली। वह अपनी बहू से अत्यधिक स्नेह करती है इसलिए प्रमोद को अपने पति से छिपाकर अपनी ओर से पाँच हज़ार रुपये देना चाहती है जिससे बहू की विदाई खुशी-खुशी हो जाये और उसके पति की बात भी रह जाये । वह एक माँ के हृदय की पीड़ा को समझती है क्योंकि वह भी एक माँ है जिसे अपनी बेटी गौरी के आने की प्रतीक्षा है। बहू की विदाई भली प्रकार हो जाये यही उसकी कामना है। वह कमला को रुपये निकाल लाने के लिए कुजियों का गुच्छा भी देने को तैयार हो जाती है। कमला का पक्ष लेते हुए वह अपने पति को खरी-खोटी सुनाने से नहीं चूकती और अपनी सूझ-बूझ से कमला को उसके भाई के साथ विदा करवाती है।

कमला – 
कमला जीवनलाल की पुत्रवधू व प्रमोद की बहन है । उसकी उम्र उन्नीस बर्ष है ।उसका विवाह अभी कुछ महीने पहले ही हुआ है । जीवनलाल दहेज़ की कमी को लेकर उसे पहले सावन पर मायके भेजने से इनकार कर देते हैं । उनका भाई उसको लेने आता है लेकिन जीवनलाल पाँच हज़ार की माँग करते हैं तथा कमला को मायके भेजने से इनकार कर देते हैं पर अंत में जीवनलाल का ह्रदय परिवर्तन हो जाने पर वह सहर्ष कमला को भेजने के लिए तैयार हो जाते हैं । अतः कमला एक सुन्दर ,सुशील,विनम्र ,धैर्यवान और समझदार विवाहिता युवती है ।

शब्दार्थ

सामर्थ्य = क्षमता = capacity
 नाता = सम्बन्ध = relation
 धब्बा = बदनामी का निशान= stigma
 खातिर = सत्कार=  hospitality
 शान = प्रतिष्ठा = prestige
भरसक= जहाँ  तक हो सके = as far as possible
हिम्मत = साहस =courage;
बदतमीज़ी = अशिष्टता = impertinence
आवारा = बिना मतलब इधर-उधर घूमने वाला = vagabond
 छोकरा = लड़का = lad
 दंग रह गए = आश्चर्यचकित हो उठे
अनुनय-विनय करना = प्रार्थना करना = to implore
इस गिरे हाल में भी = इस गरीबी की दशा में भी = even in this utter poverty
कामना = अभिलाषा = ambition
काग़ज़ के टुकड़ों = यहाँ कागज़ के नोटों से अभिप्राय है = here it means currency notes
ज़िद्दी = हठीं स्वभाव = obstinate nature
यवनिका = पर्दा = curtain.
उलझन = पेचीदा समस्या = intriguing
 कुशल-क्षेम = कुशल -मंगल = well- being
 शर्म = लज्जा = shame.
उतावली = उत्सुकता = curiosity
सरासर =बिल्कुल, पूरी तरह से = absolutely;
 राह देखना = प्रतीक्षा करना = to wait
गहने आदि रखने के लिए लोहे का सन्दूक या आलमारी =  safe
 नाक वाले = स्वाभिमान वाले = persons who believe in self-respect
 गालियों के अलावा = अपशब्दों के अलावा = except abuses
 बेढंगी बातें = नासमझी की बातें = senseless talk
 और सब नकटे हैं = दूसरे आत्म-सम्मान नहीं रखते = others have no self-respect
 नज़र में = दृष्टि में = in (his) eyes, here it means in his view.
पर बेटे वाले की नाक-भों सिकुड़ी रहती है = पर वर का पिता सदा असन्तुष्ट ही रहता है।
= But father of the bridegroom is always dissatisfied;
पर बेटे वाले की नाक-भों सिकुड़ी रहती है = पर वर का पिता सदा असन्तुष्ट ही रहता है।
= But father of the bridegroom is always dissatisfied

प्रश्नोत्तर अभ्यास –

प्रश्न 1.
” मुझे और लज्जित न करो ! ‘मेरी चोट का इलाज बेटी की ससुराल वालों ने दूसरी चोट से कर दिया ।”


  1. ‘मुझे और लज्जित न करो’- इस वाक्य को कहने वाला कौन है ? उस व्यक्ति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. ‘मेरी चोट’ से क्या आशय है ? उसने ऐसा क्यों कहा ?
  3. जीवनलाल के मन में पश्चात्ताप का भाव कब पैदा हुआ और क्यों ?
  4. गद्यांश के आधार पर इस एकांकी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –

1.इस वाक्य के कहने वाले जीवनलाल हैं। वे एक धनी व्यापारी थे, पर धनी होते हुए भी अत्यन्त लोभी थे। धन के लोभ ने उनके मानवीय गुणों को नष्ट कर दिया था। यही कारण था कि उन्होंने रमेश के विवाह में पूरा दहेज न मिलने पर कमला को विदा करने से मना कर दिया।

2.जीवनलाल के बेटे रमेश का विवाह प्रमोद की बहन कमला से हुआ था। रमेश के विवाह में पूरा दहेज न मिलने के कारण जीवनलाल को लड़की वालों पर बहुत गुस्सा आया। उन्होंने प्रमोद से कहा कि रमेश की शादी में न वारातियों की खातिर ही ठीक से हुई और न पूरा दहेज ही मिला। इस सम्बन्ध से उनके मन में गहरा घाव हो गया है। इस घाव को ही उन्होंने ‘मेरी चोट’ कहा है।

3.जीवनलाल की बेटी गौरी को उसकी ससुराल वालों ने यह कहकर विदा नहीं किया कि उन्हें दहेज कम मिला है। इस पर जीवनलाल ने अपनी बेटी के ससुराल वालों को बहुत बुरा-भला कहा। यह सुनकर उनकी पत्नी राजेश्वरी ने उनसे कहा कि उन्हें गौरी के ससुराल वालों को बुरा-भला करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि उन्होंने कमला के प्रति भी वैसा ही व्यवहार किया है। राजेश्वरी की बातों को सुनकर जीवनलाल की आँखें खुल गईं और उन्हें अपने व्यवहार पर पश्चात्ताप का अनुभव होने लगा।

4. इस एकाकी का उद्देश्य यह बताना है कि यदि लड़के वाले यह सोचें कि वे लड़की वाले भी है तो दहेज की समस्या ही समाप्त हो जाए । उन्हें सदैव यह सोचना चाहिए कि बहू और बेटी में कोई अन्तर नहीं है। लेखक ने इस तथ्य को जीवनलाल के माध्यम से उजागर किया है।

प्रश्न 2.

” मुझे और लज्जित न करो ! ’ मेरी चोट का इलाज बेटी के ससुराल वालों ने दूसरी चोट से कर दिया है।”


  1. प्रस्तुत पंक्तियों के वक्ता और श्रोता कौन हैं? प्रस्तुत पंक्तियों का संदर्भ लिखें।
  2. ‘ मेरी चोट ’ से क्या आशय है ? उसने ऐसा क्यों कहा ?
  3. जीवनलाल जी के मन में पश्चाताप का भाव कब पैदा हुआ और क्यों ?
  4. इस  अवतरण के आधार पर एकांकी के उद्‌देश्य को स्पष्ट करें ।

उत्तर-


  1. प्रस्तुत पंक्तियों के वक्ता एकांकी के मुख्य पात्र जीवनलाल जी हैं और श्रोता जीवनलाल जी की बहू कमला का भाई प्रमोद है। प्रस्तुत पंक्तियों को जीवनलाल जी ने पश्चाताप से भर कर प्रमोद से तब कहे थे जब उनका बेटा गौरी को घर लाने में नाकामयाब रहा और प्रमोद ने भी बिना कमला को लिए वापस जाने की इज़ाज़त यह कहते हुए माँगी कि , अगली बार वह उनके चोट के लिए मरहम ज़रूर लेकर आयेगा।
  2. जीवनलाल के बेटे रमेश का विवाह प्रमोद की बहन कमला से हुआ था। रमेश के विवाह में पूरा दहेज न मिलने के कारण जीवनलाल जी को लड़की वालों पर बहुत गुस्सा आया था। उन्होंने प्रमोद से कहा कि रमेश की शादी में न बारातियों की खातिर ठीक से हुई और न हि उन्हें पूरा दहेज मिला था। जिस कारण से उनके मन में गहरा घाव हो गया है। इसी घाव को उन्होंने ’ ’ मेरी चोट ’ कहा है।
  3. जब जीवनलाल जी की बेटी गौरी को उसके ससुरालवालों ने यह कह कर विदा नहीं किया कि , उन्हें दहेज पूरा नहीं मिला है तब जीवनलाल जी को अपनी गलती का आभास हुआ और यह भी समझ में आ गया कि लड़की वाले क्यों न अपना सर्वस्व लड़केवालों को दे दें फिर भी वे कभी भी संतुष्ट नहीं होते हैं।उनके मन में पश्चाताप के भाव उनकी पत्नी राजेश्वरी जी ने पैदा किए थे । उन्होंने ही जीवनलाल जी को यह एहसास दिलाया था कि , वे भी किसी की बेटी के साथ ऐसा ही बर्ताव कर रहे थे जो मावोचित नहीं था।
  4. इस एकांकी का मुख्य उद्‌देश्य समाज से दहेज प्रथा का समापन करना है। स्वच्छ भारत का सपना पूर्ण तभी होगा जब देश की सोच भी स्वच्छ होगी। जब समाज में बेटी और बहू को एक ही समान प्यार और आदर दिया जाएगा। जब हर लड़के वाले यह सोचेंगे कि, वे अपने घर एक बहू नहीं एक बेटी लाएँ हैं तो दहेज और इससे उत्पन्न होने वाली सारी समस्याएँ ही दूर हो जाएँगी।


प्रश्न 3.

“अब भी आँखें नहीं खुली? जो व्यवहार अपनी बेटी के लिए तुम दूसरों से चाहते हो वही दूसरे की बेटी को भी दो। जब तक बहू और बेटी को एक-सा न समझोगे, न तुम्हें सुख मिलेगा और न शांति!”


  1.  वक्ता और श्रोता में क्या संबंध है? वक्ता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2.  ‘आँखें खुलना’ मुहावरे का क्या अर्थ है? इसका प्रयोग किसके लिए और क्यों किया गया है?
  3.  श्रोता का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  4.  प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।



उत्तर

1. वक्ता का नाम राजेश्वरी है और श्रोता का नाम जीवनलाल है। दोनों के बीच पति-पत्नी का संबंध है। राजेश्वरी छियालीस वर्षीया स्त्री है। उसके पुत्र का नाम रमेश और पुत्री का नाम गौरी है। राजेश्वरी बहू और बेटी दोनों के प्रति समान आदर भाव रखने वाली उदार, धैर्यवान ममता की मूरत है। वह अपनी बेटी गौरी को जितना मानती है उतना ही अपनी बहू कमला को भी।

2. ‘आँखें खुलना’ मुहावरे का अर्थ है – भ्रम दूर होना। इसका प्रयोग राजेश्वरी ने अपने पति जीवनलाल के लिए किया है। इसका कारण यह था कि रमेश ने आकर बताया कि उसकी बहन गौरी को उसके ससुराल वालों ने विदा नहीं किया। उनका कहना है कि दहेज पूरा नहीं दिया गया है। इतना सुनकर जीवनलाल क्रोधित हो जाते हैं, तब राजेश्वरी उन्हें उनकी गलती का एहसास कराने के लिए उक्त कथन कहती है।

3. जीवनलाल एक धनी व्यापारी हैं जिनकी उम्र पचास वर्ष है। उनके पुत्र रमेश की नई-नई शादी कमला नाम की एक रूपवती लड़की से हुई है। जीवनलाल संकुचित सोच के ज़िद्‌दी, अभिमानी,लालची एवं कठोर स्वभाव के व्यक्ति हैं। वे बहू और बेटी में अंतर मानते हैं। वे दहेज-लोभी हैं इसलिए कमला के भाई प्रमोद से बहू की विदाई के लिए पाँच हज़ार रुपयों की माँग करते हैं। वे अहंकारी हैं। उन्हें अपनी संपत्ति पर भी घमंड है।

4. बहू की विदा एकांकी का शीर्षक सटीक एवं सार्थक है क्योंकि एकांकी की कथावस्तु बहू की विदाई को केंद्र में रखकर ही आगे बढ़ती है। जीवनलाल अपनी बहू कमला की विदाई नहीं करते हैं क्योंकि कमला के ससुराल वालों ने पूरा दहेज नहीं दिया था। जीवनलाल अब कमला के भाई प्रमोद से पाँच हज़ार रुपए की माँग करते हैं जिसे पूरा करने में वह असमर्थ है। दहेज भारतीय समाज की वह कुरीति है जिसने समाज को अमानवीय बना दिया है। वहीं दूसरी ओर जब जीवनलाल की नवविवाहिता पुत्री गौरी भी दहेज की वजह से विदा नहीं हो पाती है तब जीवनलाल की आँखें खुलती हैं और वह बहू को विदा कर देते हैं। अत: शीर्षक संक्षिप्त, रोचक एवं कथा के अनुरूप है।

प्रश्न 4.
“इसके अतिरिक्त यदि मैं अकेले ही गया तो माँ का हृदय भी टूट जाएगा।”


  1. इन शब्दों में किस व्यक्ति की मनोव्यथा व्यक्त हुई है ? उसकी मनोव्यथा का क्या कारण है ? समझाकर लिखिए।
  2. विवाह के बाद हर लड़की पहला सावन कहाँ और किस प्रकार बिताना चाहती है ? स्पष्ट कीजिए।
  3. किसकी माँ का हृदय टूट जाएगा और क्यों ? समझाकर लिखिए ।
  4. इस अवतरण के आधार पर वक्ता की मनोदशा पर प्रकाश डालिए।

प्रश्न 5.
"अगर तुम्हारी सामर्थ्य कम थी तो अपनी बराबरी का ही घर देखते।”


  1. इन शब्दों में किसने, किससे, किस सन्दर्भ में क्या कहा है ? समझाकर लिखिए।
  2. जीवनलाल ने कमला की विदा के बारे में प्रमोद से क्या कहा और क्यों ? स्पष्ट कीजिए।
  3. जीवनलाल ने गौरी की शादी के बारे में डींग मारते हुए प्रमोद से क्या कहा और क्यों ?
  4. निम्नलिखित रूपरेखाओं के आधार पर जीवनलाल का चरित्र-चित्रण कीजिए।                                           (अ) दहेज का लालची (ब) शेखीबाज़

प्रश्न 6.
"शिकायत आपको हमसे है, उस भोली-भाली लड़की ने आपका क्या बिगाड़ा है जो विदा न करके आप उससे बदला ले रहे हैं।”


  1. किसको, किससे, क्या शिकायत है और क्यों ? समझाकर लिखिए।
  2. यहाँ ‘भोली-भाली लड़की’ किसे कहा गया है ? उसे विदा न करने का निर्णय किसने लिया और क्यों ?
  3. क्या जीवनलाल ने कमला को विदा नहीं किया ? यदि किया, तो उन्होंने वैसा कब किया ?
  4. इस अवतरण को ध्यान में रखकर बताइये कि लड़के वाले दहेज के लालच में बहुओं के साथ कैसा व्यवहार करते हैं ? समझाकर लिखिए।

प्रश्न 7.
"बेटी और  बहू को एक ही तराजू पर तौलना चाहते हो ? बेटी बेटी है और बहू बहू।”


  1. इन शब्दों में किस व्यक्ति का रोष व्यक्त हुआ है ? उसके रोष का क्या कारण है ?
  2. जीवनलाल ने अपनी बहू के प्रति कैसा व्यवहार किया और क्यों ? समझाकर लिखिए।
  3. ‘बेटी बेटी है और बहू बहू’ की व्याख्या कीजिए ।
  4. इस अवतरण के अध्ययन द्वारा जीवनलाल के चरित्र की किस विशेषता पर प्रकाश पड़ता है ? समझाकर लिखिए।

प्रश्न 8.
"उसे यह भी बताते जाना कि अगली बार मेरे लिए मरहम लेकर विदा कराने कब आओगे ?”


  1. यहाँ ‘उसे’ का प्रयोग किसके लिए हुआ है ? उसके बारे में किसने, किससे, क्या कहा और क्यों ?
  2. ‘मरहम’ शब्द का प्रयोग किसने किया और क्यों ? समझाकर लिखिए ।
  3. जीवनलाल ने कमला की विदा के सम्बन्ध में क्या निर्णय लिया और क्यों ? स्पष्ट कीजिए।
  4. इन शब्दों के आधार पर जीवनलाल के चरित्र पर प्रकाश डालिए-  (अ) अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करने वाला (ब) कठोर हृदय

प्रश्न 9.
“इन मोतियों का मूल्य जानने वाला यहाँ कोई नहीं है। पत्थर पानी से नहीं पिघल सकता।”


  1. यहाँ ‘मोतियों’ का प्रयोग किसके लिए हुआ है? उनके सम्बन्ध में किसने, किससे, क्या कहा और क्यों ?
  2. ‘पत्थर पानी से नहीं पिघल सकता। इस वाक्य की व्याख्या कीजिए।
  3. जीवनलाल ने अपनी बहू के प्रति कैसा व्यवहार किया और क्यों ? समझाकर लिखिए।
  4. इस अवतरण को ध्यान में रखकर बताइए कि दहेज के अभाव में वधुओं को कैसा जीवन व्यतीत करना पड़ता है ।समझाकर लिखिए।

प्रश्न 10.
" इस गिरे हाल में भी मकान सात-आठ हज़ार में तो बिक ही जाएगा।”


  1. मकान बेचने की बात सोचने वाला यह व्यक्ति कौन है ? वह इस समय कहाँ है और यहाँ क्यों आया है ?
  2. ‘गिरे हाल’ से क्या तात्पर्य है ? ऐसा हाल किसका हो गया है और क्यों ?
  3. इन शब्दों के आधार पर वक्ता की मनोदशा पर प्रकाश डालिए।
  4. इस अवतरण के आधार पर बताइए कि धन के अभाव में लड़की वालों को किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है और क्यों ?

प्रश्न 11.
"सच कहती हूँ, विदा न होने से मुझे ज़रा भी दु:ख न होगा।”


  1. इन शब्दों में किस युवती की मनोव्यथा व्यक्त हुई है ? उसकी मनोव्यथा का क्या कारण है?
  2. क्या कमला को विदा न होने का दु:ख नहीं था ? यदि था, तो उसने ऐसा क्यों कहा ?
  3. कमला के ससुर ने उसकी विदा के बारे में क्या निर्णय लिया और क्यों ? समझाकर लिखिए।
  4. इस अवतरण के आधार पर कमला के चरित्र पर प्रकाश डालिए।

प्रश्न 12.
" लेकिन आज नहीं तो कल, रुपया तो देना ही पड़ेगा ।”


  1. किसे, कितना रुपया देना पड़ेगा और क्यों ? समझाकर लिखिए।
  2. जीवनलाल ने कमला की विदा के सम्बन्ध में प्रमोद से क्या कहा और क्यों?
  3. रुपए का प्रबन्ध करने के लिए प्रमोद ने क्या उपाय सोचा और क्यों ? समझाकर लिखिए ।
  4. इस अवतरण को ध्यान में रखकर प्रमोद की मनोदशा पर प्रकाश डालिए।

प्रश्न 13.
“मेरे लिए जैसा रमेश है वैसे ही तुम। बोलो कितना रुपया चाहते हैं वे ?”


  1. इन शब्दों में किसने, किससे, क्या पूछा और क्यों ? समझाकर लिखिए।
  2. रमेश कौन है ? वह इस समय कहाँ गया है और क्यों ? स्पष्ट कीजिए।
  3. जीवनलाल ने किससे, कितना रुपया माँगा था और क्यों ? समझाकर लिखिए।
  4. इस अवतरण के आधार पर राजेश्वरी के चरित्र पर प्रकाश डालिए। (अ) कमला से पुत्री के समान प्रेम करने वाली (ब) धैर्यवती ।

प्रश्न 14.
“उनके मुँह पर मारकर कहना कि यह लो काग़ज़ के रंग-बिरंगे टुकड़े, जिन्हें तुम आदमी से भी ज्यादा प्यार करते हो।”


  1. इन शब्दों को किसने, किस सन्दर्भ में कहा है और क्यों ? समझाकर लिखिए।
  2. ‘कागज़ के रंग-बिरंगे टुकड़ों’ से क्या अभिप्राय है ? उनके सम्बन्ध में किसने, किससे, क्या कहा और क्यों ?
  3. क्या प्रमोद ने राजेश्वरी से रुपए ले लिए ? यदि नहीं, तो क्यों ?
  4. इस अवतरण के आधार पर जीवनलाल और राजेश्वरी के चरित्रों का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।

प्रश्न 15.
" जिस तह उतावली होकर मैं गौरी की राह देख रही हूँ ,उसी तरह तुम्हारी माँ भी कमला की राह देख रही होगी।”


  1. इन शब्दों में किसने, किससे , क्या कहा ? उत्तर अपने शब्दों में लिखिए ।
  2. क्या गौरी को उसके ससुराल वालों ने विदा कर दिया ? यदि नहीं, तो उन्होंने क्या कहा ?
  3. क्या कमला विदा हो सकी ? यदि हाँ, तो ऐसा कब सम्भव हुआ ?
  4. इस अवतरण के अध्ययन द्वारा राजेश्वरी के चरित्र की किस विशेषता का पता चलता है ? समझाकर लिखिए ।

प्रश्न 16.
"तुम्हें तो मेरी हर बात में बुराई ही दिखाई देती है ।”


  1. इन शब्दों को किसने, किससे और किस सन्दर्भ में कहा है ? उत्तर अपने शब्दों में लिखिए।
  2. राजेश्वरी को जीवनलाल की कौन-सी बात पसन्द नहीं आई और क्यों ? समझाकर लिखिए।
  3. राजेश्वरी की बात सुनकर जीवनलाल ने क्या पूछा और क्यों ?
  4. प्रमोद ने जोवनलाल के प्रश्न का क्या उत्तर दिया और क्यों ? समझाकर लिखिए।

प्रश्न 17.
"उन्होंने विदा नहीं की, बाबूजी। कह रहे थे दहेज पूरा नहीं दिया गया।”


  1. यहाँ ‘बाबूजी’ का प्रयोग किस व्यक्ति के लिए किया गया है ? उस व्यक्ति का सक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. किसने, किसकी विदा के बारे में, किससे, क्या कहा और क्यों ? स्पष्ट कीजिए ।
  3. इन शब्दों को सुनकर जीवनलाल ने गौरी की ससुराल वालों के प्रति क्या शब्द कहे और क्यों ?
  4. क्या जीवनलाल द्वारा गौरी की ससुराल वालों को बुरा-भला कहना उचित था ? यदि नहीं, तो क्यों ?

प्रश्न 18.
"और बेटे वाला यह याद रखे कि वह बेटी वाला भी है तो सभी उलझनें सुलझ जाएँ।”


  1. इन शब्दों में किसने, किससे, क्या कहा ? उत्तर अपने शब्दों में दीजिए।
  2. क्या जीवनलाल बेटी और बहू को समान दृष्टि से देखते थे ? यदि नहीं, तो उनकी उलझन का क्या कारण था ?
  3. इन शब्दों का जीवनलाल पर क्या प्रभाव पड़ा और क्यों ? समझाकर लिखिए।
  4.  एकांकी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।

प्रश्न 19.
"अब भी आँख नहीं खुली? जो व्यवहार अपनी बेटी के लिए तुम दूसरों से चाहते हो वही दूसरे की बेटी को भी दो ।”


  1. वक्ता और श्रोता में क्या संबंध है? वक्ता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. ‘आँखें खुलना’ मुहावरे का क्या अर्थ है? इसका प्रयोग किसके लिए और क्यों किया गया है?
  3.  श्रोता का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  4.  प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।

अतिरिक्त प्रश्न – उत्तर

प्र. जीवनलाल क्यों असंतुष्ट हैं ?
उ . जीवनलाल अपने बेटे की शादी में अधिक दहेज़ पाने की कामना करते थे ,कितुं उन्हें कम दहेज़ मिला इससे जीवनलाल को बहुत ठेस लगी। जीवनलाल अपने बेटे की शादी में कम दहेज़ मिलने से नाराज़ भी थे।

प्र. प्रमोद कमला को विदा करने क्यों आया था ?
उ . कमला का विवाह रमेश से इसी वर्ष हुआ था। ऐसी वहाँ परंपरा थी की बेटी के विवाह के बाद उसका पहला सावन मायके में ही हो । इसी कारण प्रमोद अपनी बहन कमला को उसकी ससुराल से विदा कराने आया था।

प्र . बहु को विदा करने के लिए जीवनलाल ने क्या शर्त रखी थी और क्यों ?
उ . बहु को विदा कराने के लिए जीवनलाल ने कमला के भाई प्रमोद के सामने यह शर्त रखी की जब वह उन्हें पाँच हज़ार रुपये दे दे तो वह कमला को उसके साथ जाने देंगे ।

प्र. राजेश्वरी देवी कौन है ? उनका स्वभाव कैसा है ?
उ. राजेश्वरी देवी जीवनलाल की पत्नी है ,कमला की सास एवं एवं रमेश की माँ है ।वह एक संवेदनशील महिला हैं । वह प्रमोद की समस्या पर विचार पर उनसे पैसे लेकर जीवनलाल को देने के लिए कहती है। वह कमला को माँ के समान व्यवहार करती हैं। वे अपने पति को भी समझाती रहती है कि उन्हें किसी प्रकार का लोभ नहीं करना चाहिए और अपनी बहु कमला को अपनी बेटी गौरी के समान समझना चाहए। वह एक समझदार व्यवहार कुशल , ममतामयी तथा उदार ह्रदय महिला हैं ।

प्र. बेटी और बहू के सम्बन्ध में जीवनलाल के क्या विचार हैं ?
उ. जीवनलाल लोभी होने के साथ – साथ संवेदनहीन एवं संकीर्ण विचारों के भी है । वह बहू को बेटी के समान नहीं समझते । जीवनलाल बेटी को तो बहुत प्यार करते हैं , लेकिन अपनी बहु को पर्याप्त दहेज़ न मिलने के कारण मायके भेजने से मना कर देते हैं । बेटी के स्वागत के लिए वह मन लगा कर तैयारियाँ कर रहे हैं लेकिन अपनी ही बहु को मायके नहीं भेज रहे हैं । इस प्रकार जीवनलाल बेटी और बहू में अंतर करते हैं।

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